स्वतंत्रता के बाद सबसे ज्यादा न समझा हुआ, अव्याख्यित पद अगर कोई रहा है तो वो है "सामान नागरिक संहिता" जिसका प्रचार राजनेता जनता को बरगलाने के लिए करते है और उनको संप्रदाय के आधार पर बांटकर अपना राजनीतिक हित साधते हैं। उन्होंने हिन्दू भाइयों के बीच एक गलत धारणा पैदा कर दी है कि मुसलमानों को मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के द्वारा चार बीवियां रखने कि छूट मिली हुई है और जिससे मुसलमान जल्द ही हिन्दुओं को आबादी में पछाड़ देंगे और हिन्दू अल्पसंख्यक हो जायेंगे और बाबर की औलादे एक बार फिर भारत पर शासन करेंगी और वो भी अपनी संख्या के आधार पर लोकतांत्रिक तरीके से।


इसी प्रकार मुसलमानों के बीच एक एक डर पैदा किया जाता है कि अगर "सामान नागरिक संहिता" भारत में लागू की गयी तो उनसे जबरदस्ती हिन्दू कानून को मनवाया जायेगा और उनका भारत में रहना मुश्किल हो जायेगा। लेकिन वे एक बात बड़ी चालाकी से छिपा जाते हैं कि इसलाम भारत में बाबर के आने से पहले से आ चुका था और सन १५२६ में बाबर ने इब्राहीम लोधी को, जो कि एक मुस्लिम राजा था, को हराकर दिल्ली पर कब्ज़ा किया था न कि हिन्दू राजा को हराकर। इसके अतिरिक्त मुसलमानों कि एक बहुत छोटी से संख्या विदेशी धरती से सम्बन्ध रखती है और अधिकतर आबादी स्थानीय मिटटी की औलाद है.


और ये बात न केवल इतिहासकार बार-बार कहते हैं बल्कि स्वामी विवेकानंद जो कि एक महान हिन्दू दार्शनिक हैं का कहना है कि इसलाम भारत में तलवार के दम पर नहीं फैला। इस्लाम भारत में गरीबों और दबे कुचले लोगों के लिए एक वरदान बनकर आया. यही वजह है कि आबादी का १/५ लोग ही मुसलमान हुए. इसी तरह, सच्चर कमेटी कि रिपोर्ट ने संघ परिवार के इस झूठे और आधारहीन प्रचार की पोल खोल दी कि अनियंत्रित मुस्लिम आबादी एक दिन हिन्दुओं से ज्यादा हो जायेगी. सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में ये पाया कि "भारत कि जनसँख्या बढोत्तरी को देखते हुए २१वी शताब्दी के अंत तक भारत की जनसँख्या स्थिर हो जायेगी जिसमे मुस्लिम आबादी २० प्रतिशत से कम होगी"
इसके अतिरिक्त, इस प्रकार के झूठे प्रचार में सफलता प्राप्त कर लेने के बाद सांप्रदायिक शक्तियों और संघ परिवार ने हिन्दू भाइयों का वोट हासिल करने के लिए ये कहते हैं कि अगर वे सत्ता में आये तो "सामान नागरिक संहिता" को लागू करके मुस्लिमों को अनियंत्रित आबादी पर रोक लगायेंगे और एक बार फिर भारत को मुस्लिमों के हाथों में जाने से रोकेंगे। कभी-कभी वे हिन्दुओं से भी आबादी बढाने कि अपील करते हैं। इसी तरह, स्वघोषित धर्मनिरपेक्ष मुसलमानों का वोट हासिल करने के लिए घोषणा करते हैं कि अगर वे सत्ता में आये तो ऐसा कुछ भी नहीं होने देंगे और मुसलमानों के लिए मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के प्राविधान को जारी रखेंगे. निश्चित रूप से, "सामान नागरिक संहिता" की बात तब ही उठनी चाहिए जब भारत में एक से अधिक नागरिक संहिता हो लेकिन संवैधानिक रूप से भारत में नागरिक संहिता है ही नहीं इसलिए "सामान नागरिक संहिता" की बात उठनी ही नहीं चाहिए थी.


इसके अतिरिक्त, हमारे राजनेता अपने राजनीतिक हित के लिए जान बूझकर इस बात से देश के नागरिकों को अँधेरे में रखते है। विडंबना देखिये, कोई भी नहीं, यहाँ तक कि मीडिया भी कोशिश नहीं करती कि इस ग़लतफ़हमी को दूर किया जाये और सच्चाई को उजागर करे ताकि "सामान नागरिक संहिता" कि गलत धारणा को दूर किया जाये इससे पहले कि ये लोगों के दिमाग में गलत रूप से जगह बना ले और लोगों को सांप्रदायिक आधार पर बाँट दे जिसका दुष्परिणाम देश को भुगतना पड़े.हमारे हिन्दुस्तान में कई तरह के पर्सनल ला बोर्ड हैं जो कई समुदाय से सम्बंधित हैं जो उनके संपत्ति, विवाह, तलाक़, रख-रखाव, गोद लेने और उत्तराधिकार के अधिकारों की रक्षा करते हैं और ये विशिष्ट धर्म से सम्बन्ध रखने वाले लोगों पर ही लागू होते हैं। जैसे हिन्दू विवाह कानून एक्ट १९५५ हिन्दू, सिख, बौध और जैन से सम्बंधित है. मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी के लिए उनका अपना पर्सनल ला है. ये सर्वत्र सच है कि संघ परिवार और उनके सहयोगी हमेशा मुस्लिमों को ही विलेन के रूप में प्रदर्शित करते हैं ताकि जनता को सांप्रदायिक आधार पर बांटकर हिन्दू वोटों का तुष्टिकरण किया जा सके.


जारी है...........................

प्रस्तुतकर्ता खुर्शीद अहमद सोमवार, 28 सितंबर 2009 8 टिप्पणियाँ

सज्जनों! यदि दिल चीर कर या आंसुओं को बहाकर देश के पर्वतों, वृक्षों और नदियों के ज़रिये हम आपको इस देश की कराह सुनवा सकते तो अवश्य इस कराह को आप तक पहुंचाते. यदि वृक्ष और पशु बोलते तो वे आपको बताते कि इस देश की अंतरात्मा घायल हो चुकी है. उसकी प्रतिष्ठा और ख्याति का बट्टा लगाया जा चूका है और पतन की ओर बढ़ने से वह अग्नि-परीक्षा के एक बड़े खतरे में पढ़ गया है. आज संतों, धर्मानिष्ठों, दार्शनिकों, लेखकों और आचार्यों के मैदान में आने, नफरत की आग बुझाने और प्रेम का दीप जलाने की आवश्यकता है. इस देश की नदियाँ, पर्वत और देश के कण-कण तक आपसे अनुरोध कर रहे हैं कि आप इंसानों का रक्तपात न कीजिये, नफरत के बीज मत बोइये, मासूम बच्चों को अनाथ होने और महिलाओं को विधवा होने से बचाइये. भारत को जिन विभूतियों ने स्वाधीन कराया था, उन्होंने अहिंसा, सद्व्यवाहर और जनतंत्र के पौधों कि सुरक्षा का दायित्य हमें सौंपा था और निर्देश दिया था कि इन पौधों को हाथ न लगाया जाए, किन्तु हम उनकी सुरक्षा में असफल रहे. इसके फलस्वरूप आज हिंसा और टकराओं का दानव हमारे सामने मुंह खोले खडा है. नफरत और हिंसा कि आग हमारी उन समस्त परम्पराओं को जला देने पर तत्पर है, जिनके लिए हम समस्त संसार में विख्यात थे और आदर एवं प्रतिष्ठा की द्रष्टि से देखे जाते थे. हमारी गलतियों ने बाहरी देशों में हमारा सर नीचा कर दिया और हमारी स्थिति यह हो गयी है कि हम मुंह दिखने योग्य नहीं रह गए हैं.
आज नफरत कि इस आग को बुझाइए और याद रखिये! जब यह द्फ्न्सा किकी देश या सम में आ जाती है तो फिर दुसरे धर्म वाले ही नहीं, अपनी ही कौम और धर्म कि जातियां और बिरादरियां, परिवार, मोहल्ले, कमज़ोर और मोहताज़ इंसान, जिनसे लेशमात्र भी विरोध हो, उसका निशाना बनते हैं.
पयामे इंसानियत फोरम कई वर्षों से इस दिशा में प्रयत्नशील है कि समाज एवं देश में हो रहे नैतिक पतन को दूर करने तथा आपस में प्रेम और भाईचारा पैदा करने के दोए देश के प्रत्येक नागरिक को उसकी ज़िम्मेदारी का एहसास दिलाया जाये कि वह इस दिशा में जागरूक हो और अपना योगदान दे इस्सके अतिरिक्त समस्त धर्मों के एकता के सूत्रों व शिक्षाओं को परिचित करा कर विभिन्न धर्मोलम्बियों के मध्य पारस्परिक प्रेम, विश्वास व समझ को आगे बढाकर आपसी नफरत और भेद-भाव को दूर किया जाए, तथा इंसानों के अन्दर से निकल चुकी इंसानियत को एक बार पुनः जीवित किया जाये. इसी दिशा में कदम बढाते हुए फोरम द्वारा ०२ अगस्त, २००९ को रवीन्द्रालय, चारबाग, लखनऊ में प्रातः १०.०० बजे से 'हमारा समाज और फ्मारी जिम्मेदारियां' विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया है. जिसमे देश के विभिन्न धर्मों व वर्गों के बुद्धिजीवियों तथा इस दिशा में कार्यरत संस्थाओं के पदाधिकारियों को आमंत्रित किया गया है. इसी सन्दर्भ में 'इसलाम शांति व मानवता का सन्देश' शीर्षक के अर्न्तगत एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था, जिसका पुरस्कार वितरण समारोह भी इस अवसर पर आयोजित किया जायेगा और विजेताओं को सम्मानित किया जायेगा.
अतः आपसे निवेदन है कि आप इस में उपस्थित होकर उपरोक्त विषय पर बुद्धिजीवियों के विचारों को सुने और एक आदर्श भारतीय समाज बनाने में हमारा सहयोग करें.

प्रस्तुतकर्ता खुर्शीद अहमद मंगलवार, 21 जुलाई 2009 1 टिप्पणियाँ

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